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"सिंह जो सतपाल कि तरह छाबरा रहेगा!!!!!!!!!!!"

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मीडिया में रहते हुए ज्यादा समय तो नहीं हुआ लेकिन ये थोड़े समय मॅ जान कुछ ज्यादा ही गया हूँ। उन्ही में से एक वयक्ति के बारे में जिक्र करना चाहूंगा जिनका नाम 'सतपाल सिंह छाबरा' हैं और उन्हें इसी नाम से याद भी किया जायेगा। इनसे मुझे मिले लगभग दो साल जितना हुआ था लेकिन जान-पहचान ऐसा हो गया था मानो बचपन के दोस्त हो। जब भी मैं उनसे मीडिया पाठ्क्रम के बारे में जानने के लिए मिलता था या कॉलेज पर कभी चाय पिने के लिए बुलाता था तो ऐसी-ऐसी क्रिएटिविटी के बारे मैं चर्चा करते थे कि मानो वो कहते हैं न "मनुस्य य जब सोचना शुरू कर देता हैं फिर,क्रिएटिविटी बनने लगती हैं ". मुझे याद हैं उन्होंने कहा था "क्रिएटिविटी के लिए दिमाग को सचेतन और भावनात्मक होना जरुरी होता हैं तभी वो विषय वस्तु को समझ और समझा सकता है। ". और हाँ एक और बात मुझे स्मरण हैं जो उन्होंने कहा था कि मैं तो एक गुजराती बन के रहना पसंद करूँगा, मुझे गुजराती भाषा बहुत पसंद है। अंततः मैं यही कहूँगा कि सतपाल जी आप अमर हैं और सच्चे पत्रकारिता के सपूत हैं और हमसब के दिलो में बसे रहेंगे। क्योंकि कलाकार और उसकी कल...

Theories of Press

Theories of Mass Media from Shashikant Bhagat

Press Institute of India Award' 2013 For Best Article and Photograph

Pii icrc award 2013 advt press institute of india from Shashikant Bhagat
Shashikant Bhagat: A Memory of My Beloved Mother's Death Anniversary  DOD: March 20, 2012.           तेरी याद आती है माँ  जब-जब भी मन की तस्वीरों में तुझको देखता हूँ माँ  तब-तब तेरी  याद   बहुत आती है माँ    वो बचपन की याद जब तुम अपने हाथों से खाना खिलाती थी  गुस्सा आता था तब प्यार से आँखे दिखाती थी  कभी बबुआ कह के बुलाती थी तो कभी बचवा कह के बुलाती थी  अब तो कोई नहीं कहता है माँ,  तब-तब  तेरी  याद   बहुत आती है माँ    कभी भूखा लगती थी तो दौड़ के तेरे पास आता था माँ  अब तो भूख लगती है तो  ढूंढता हूं कहाँ हो माँ  तब-तब तेरी  याद   बहुत आती है माँ    बोल तो रही थी की तेरे साथ रहूँगी  बस यही अंतिम  इच्छा है मेरी  तुझे मन की तस्वीरों मे रखा है माँ  लेकिन जब-जब तुझे ध्यान से देखता हूँ माँ  तब-तब तेरी  याद   बहुत आती है माँ...